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बिहार के रोहतास ज़िले में बहने वाली यह नदी पहली नज़र में ही डर और जिज्ञासा दोनों पैदा कर देती है। इसका पानी सामान्य नहीं बल्कि लाल रंग का दिखाई देता है, जैसे इसमें खून घुला हो। इसी वजह से स्थानीय लोग इसे वर्षों से “रक्तरंजित नदी” कहते आ रहे हैं।
रोहतास कोई साधारण इलाका नहीं है। यह क्षेत्र प्राचीन और मध्यकालीन इतिहास में भयानक युद्धों और सत्ता संघर्षों का गवाह रहा है। रोहतासगढ़ किला, जो कभी शेरशाह सूरी की शक्ति का प्रतीक था, इसी क्षेत्र में स्थित है।
इतिहासकारों के अनुसार, इस क्षेत्र में:
इन्हीं घटनाओं ने इस नदी से जुड़ी डरावनी कहानियों को जन्म दिया।
स्थानीय लोककथाओं के अनुसार, कभी यहाँ इतना भीषण युद्ध हुआ कि मरे हुए सैनिकों का खून बहकर सीधे नदी में जा मिला।
कहा जाता है कि:
कुछ ग्रामीण मानते हैं कि रात के समय नदी के पास एक अजीब सी भारी और उदास ऊर्जा महसूस होती है, जैसे धरती अब भी उस त्रासदी को भूल नहीं पाई हो।
कई गाँवों में इस नदी को लेकर डर और श्रद्धा दोनों मौजूद हैं।
यह नदी लोगों के लिए सिर्फ पानी का स्रोत नहीं, बल्कि एक भावनात्मक प्रतीक बन चुकी है।
विज्ञान इस रहस्य को डर नहीं, बल्कि भूगोल और रसायन विज्ञान से जोड़कर देखता है।
भूवैज्ञानिकों के अनुसार रोहतास पठार में:
पाए जाते हैं।
बारिश के मौसम में जब पानी इन चट्टानों से होकर बहता है, तो आयरन घुलकर पानी में मिल जाता है।
आयरन ऑक्साइड का रंग बिल्कुल सूखे खून जैसा होता है, जिसकी वजह से नदी का पानी लाल या गहरा भूरा दिखाई देता है।
वैज्ञानिक रूप से देखा जाए तो:
स्थानीय लोग इसे सीमित रूप से खेती में उपयोग करते हैं।
यह नदी लोगों में दो तरह की भावनाएँ पैदा करती है—
पर्यटकों के लिए यह स्थान एक अनोखा अनुभव बन जाता है, जहाँ प्रकृति और इतिहास आपस में मिलते हुए महसूस होते हैं।
रोहतास की यह रक्तरंजित नदी केवल पानी नहीं है—
जब भी इसका पानी लाल होता है, तो ऐसा लगता है मानो धरती खुद कह रही हो—
“मैंने जो देखा है, उसे मैं कभी नहीं भूलती।”
रोहतास की यह नदी हमें याद दिलाती है कि कभी-कभी प्रकृति इतिहास को शब्दों में नहीं, रंगों में लिखती है।