1969 में नील आर्मस्ट्रॉन्ग ने चंद्रमा पर कदम रखे और वहां अपने पदचिन्ह छोड़े। नासा द्वारा जारी तस्वीरों में ऐसा प्रतीत होता था जैसे चंद्रमा की सतह पर गड़ा अमेरिकी झंडा हवा में लहरा रहा हो। उस समय के अमेरिकी टेलीविजन प्रसारण में भी झंडा कुछ हिलता हुआ दिखा, जिसने षड्यंत्र सिद्धांतकारों को इस पर सवाल उठाने का मौका दिया। उनका कहना था कि चांद पर हवा नहीं है, फिर झंडा कैसे लहरा रहा है?
नासा ने इस पर सफाई देते हुए बताया कि झंडा लंबे समय तक मुड़ा रहने के कारण और पोल के सहारे खड़ा किया गया था, जिससे ऐसा प्रतीत हुआ।
इसके अलावा, कुछ वैज्ञानिकों ने तस्वीरों में उस स्थान पर कोई क्रेटर न होने पर भी सवाल उठाया, जहां चंद्रयान की लैंडिंग हुई थी। उन्होंने कहा कि अगर वाकई में यान वहां उतरा था, तो वहां एक प्रभाव चिह्न होना चाहिए।
षड्यंत्र सिद्धांतकारों का एक और तर्क तस्वीरों में वस्तुओं की छाया को लेकर था। वे कहते हैं कि अलग-अलग छायाएं दिखना इस बात का संकेत है कि वहां कई प्रकाश स्रोत हैं, जबकि चंद्रमा पर सूर्य के अलावा कोई प्रकाश स्रोत नहीं है। नासा ने इसका जवाब देते हुए कहा कि चंद्रमा की सतह से परावर्तित सूर्य की रोशनी से यह भ्रम पैदा हुआ।
एक और विवाद वैन एलियन रेडिएशन बेल्ट को लेकर था। षड्यंत्रकारियों का कहना था कि अपोलो 11 का इस बेल्ट से गुजरना अंतरिक्ष यात्रियों के लिए खतरनाक होता, लेकिन नासा ने स्पष्ट किया कि यान का संपर्क बेल्ट से बहुत मामूली था, जिससे यात्रियों को कोई गंभीर नुकसान नहीं हुआ।
इसके अलावा, तस्वीरों और वीडियो में साफ आकाश में तारे न दिखने पर भी सवाल उठे। नासा ने कहा कि तस्वीरों की गुणवत्ता कम होने के कारण तारे नजर नहीं आए।
एक तस्वीर में एक कंकड़ पर 'C' अंकित दिखने पर षड्यंत्रकारियों का कहना था कि यह स्टूडियो शूट का संकेत है। नासा ने इस पर सफाई दी कि यह केवल प्रिंटिंग की त्रुटि थी।
अंततः, फ़िल्म निर्देशक स्टैनली कुब्रिक का नाम भी इस विवाद में आया। कहा गया कि अमेरिकी सरकार ने उन्हें चंद्रमा मिशन की झूठी शूटिंग करने को कहा, और उनकी फिल्म "2001: ए स्पेस ओडिसी" में इसी फुटेज का इस्तेमाल हुआ। इस विवाद ने चंद्रमा पर लैंडिंग को लेकर संदेह गहरा कर दिया।